भगत सिंह का प्रेम-संबंध पर विचार उनके द्वारा सुखदेव को लिखे पत्र में मिलता है। यह पत्र 18 अप्रैल 1929 को लिखा गया था। सुखदेव और भगत सिंह में अच्छी मित्रता थी। लेकिन प्रेम और स्त्री- पुरुष सम्बन्धों को लेकर दोनों में काफ़ी मतभेद था। सुखदेव के विचार में स्त्री से प्रेम एक प्रकार की कमज़ोरी का प्रतीक है, वहीं भगत सिंह के लिए स्त्री-पुरुष प्रेम नैतिक भी है और शक्ति प्रदान करने वाला भी। इस पत्र में भगत सिंह के इन विषयों पर विचार काफ़ी स्पष्टता से प्रकट हैं।
“क्या प्यार कभी किसी मनुष्य के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं आज इस प्रश्न का उत्तर देता हूँ – हाँ, यह मेज़िनी था। तुमने अवश्य पढ़ा होगा की अपनी पहली विद्रोही असफलता, मन को कुचल डालने वाली हार, मरे हुए साथियों की हार, वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका के एक ही पत्र से वह, यही नहीं की किसी एक से मज़बूत हो गया, बल्कि सबसे अधिक मज़बूत हो गया।”

“जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बन्ध है, मैं कह सकता हूँ की यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाय एक आवेश के, लेकिन पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यन्त मधुर भावना है। …प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊँचा उठता है, यह कभी भी उसे नीचा नहीं करता, बशर्ते प्यार-प्यार हो।”
“क्रन्तिकारी विचारों के होते हए हम नैतिकता के सम्बंध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धरणा नहीं अपना सकते।”
भगत सिंह, सुखदेव को अति आदर्शवादी न बनने की सलाह देते हैं। वह कट्टरपंथी विचारों को छोड़ के स्वतंत्रता से सोचने की बात करते हैं। इतनी कम उम्र में भी उनके ये विचार रखना उनके वैचारिक परपक्व्ता को दर्शाता है।
स्रोत: वीरेंद्र सिंधु (संपादन), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज़, राजपाल एंड सन्ज़, नई दिल्ली, 2019.